2020 कई मायनों में एक यादगार वर्ष

Amalendu Upadhyaya
Posted By -
0

2020 a memorable year in many ways

डा. सीमा जावेद

( पर्यावरणविद, स्वतंत्र पत्रकार & संचार रणनितिज्ञ ) 

‘कोराना ईयर’ यानी 2020 कई मायनों में एक यादगार वर्ष रहेगा। इस वर्ष में कोरोना के अलावा और बहुत कुछ ऐसा महत्वपूर्ण हुआ है, जो दुनिया को याद रहेगा। जहाँ एक तरफ पर्यावरण सुरक्षा से लेकर आदिवासी और मूल निवासियों के अधिकारों से जुड़े क़ानून कमज़ोर हुए, वहीं दूसरी तरफ इस साल में पेरिस समझौते के पांच साल पूरे हुए। इसके मद्देनजर कई देशों ने खुद को क्लाइमेट न्यूट्रल बनाने के लिये समय सीमा की घोषणा की। इनमें यूरोपीय संघ सहित यूके, कनाडा जैसे विकसित देश ही नहीं बल्कि अनेक एशियाई देश जैसे चीन, जापान, दक्षिण कोरिया भी शामिल हैं।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की ताज़ा रिपोर्ट की मानें तो कोविड की आर्थिक मार से उबरने के लिए अगर अभी पर्यावरण अनुकूल फैसले लिए जाते हैं तो 2030 तक के अनुमानित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 25 प्रतिशत की कमी लायी जा सकती है।

UNEP की ताज़ा एमिशन गैप रिपोर्ट कहती है कि कोविड-19 महामारी के कारण 2020 में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में गिरावट के बावजूद, दुनिया अभी भी इस सदी में 3°C से अधिक के तापमान वृद्धि की ओर बढ़ रही है।

इस रिपोर्ट में पाया गया है कि 2020 में उत्सर्जन में 7% की गिरावट दर्ज तो की गयी, लेकिन 2050 तक इस गिरावट का मतलब ग्लोबल वार्मिंग में कुल 0.01 डिग्री की गिरावट ही है।

वहीं साथ में क्रिश्चियन एड की एक नई रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन से दुनिया को 2020 में हुई अरबों की हानि हुई।

रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन से प्रभावित दस मुख्य घटनाओं की पहचान की गई है, जिनमें से प्रत्येक में 1.5 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है। बाढ़, तूफान, उष्णकटिबंधीय चक्रवात और आग ने दुनिया भर में हजारों लोगों की जान ले ली। गहन एशियाई मानसून दस सबसे कम खर्चीली घटनाओं में था। रिकॉर्ड तोड़ तूफान के मौसम और आग के कारण अमेरिका सबसे अधिक लागतों से प्रभावित हुआ।

ग्‍लोबल बर्डेन ऑफ डिसीसेस के अनुमान के मुताबिक वर्ष 1995 में भारत में जहां क्रॉनिक ऑब्‍स्‍ट्रक्‍टिव पल्‍मोनरी डिसीसेस (सीओपीडी) और ब्रोन्कियल अस्थमा की वजह से 5394 मिलियन डॉलर का भार पड़ा। वहीं, वर्ष 2015 में यह लगभग दोगुना होकर 10664 मिलियन डॉलर हो गया।

इस साल कोराना महामारी से निपटने के लिये लॉकडाउन लागू होने के साथ ही भारत सरकार ने पर्यावरण प्रभाव आकलन का एक मसौदा (ड्राफ्ट नोटिफिकेशन) जारी किया जिसका पर्यावरणविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने विरोध किया। वहीं दूसरी तरफ तीन भारतीय राज्य राजस्थान, तमिलनाडु और कर्नाटक ने गुजरात और छत्तीसगढ़ के नक्शेकदम पर चलते हुए ‘कोई नया कोयला नहीं’ नीति घोषित की। इसका मतलब है कि इन राज्यों को भविष्य की ऊर्जा संबंधी सभी मांगें अक्षय आधारित ऊर्जा से प्रभावी ढंग से पूरी की जा सकती हैं।

एक अच्छी खबर यह है कि नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित अध्‍ययन में पता चला है कि कार्बन डाईऑक्‍साइड तथा अन्‍य ग्रीनहाउस गैसों के उत्‍सर्जन में कटौती के लिये मजबूत और तीव्र कदम उठाने से अगले 20 वर्षों में ग्‍लोबल वार्मिंग की दर कम करने में मदद मिलेगी। अध्‍ययन में रेखांकित किया गया है कि जलवायु परिवर्तन रोकने के लिये फौरी कदम उठाने से मौजूदा जिंदगी में ही फायदे मिल सकते हैं। इनके लिये भविष्‍य में लम्‍बा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। 

यह साल चौंकाने वाले चक्रवातों का रहा और भारत में अम्फान, निसर्ग, जैसे एक के बाद दूसरे तूफ़ान आये। जो गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा और केरल के शहरों की सघन आबादी वाली तट रेखा के लिए हर बार एक जोखिम साबित होती है।  वहीं अमरीका के अटलांटिक में इस साल एक जून से 30 नवंबर के बीच – अब तक के सर्वाधिक चक्रवाती तूफान आये। इतिहास में केवल दूसरी बार ‘फाइव स्टॉर्म सिस्टम’ नामक दुर्लभ मौसमी घटना भी देखने को मिली।

दिसंबर में प्रकाशित हुई ग्लोबल कार्बन बजट रिपोर्ट के मुताबिक इस साल दुनिया का कुल कार्बन इमीशन 3400 करोड़ टन रहा जो पिछले साल (2019) की तुलना में 7% कम है। कार्बन इमीशन में यह गिरावट दरअसल कोरोना महामारी के कारण दिखी है।

कुल मिलकर भारत के लिए महत्वपूर्ण यह है कि वह पैरिस समझौते के वादे निभाने की राह पर बढ़ रहा है। बैंक ऑफ़ अमेरिका की एक रिपोर्ट जारी हुई जिसके मुताबिक़ भारत वाक़ई अपने लक्ष्य न सिर्फ़ पूरे करेगा बल्कि उसके आगे निकलने के लिए भी तैयार है

जहां तक अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में आगे बढ़ने का सवाल है तो भारत सही रास्ते पर है। भारत अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहा है। वह एमिशंस इंटेंसिटी के मामले में 24% की गिरावट दर्ज कर चुका है। इसके चलते हालाँकि भारत, में दुनिया के दस में से नौ सबसे प्रदूषित शहर हैं, फिर भी अक्षय उर्जा के रास्ते पर आगे बढ़कर वो अपने एमिशन टारगेट्स से आगे भी निकल सकता है।

Post a Comment

0Comments

Post a Comment (0)