नई दिल्ली, 11 नवंबर: रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defense Research and Development Organization– डीआरडीओ) ने सोनार प्रणालियों के लिए नई अत्याधुनिक परीक्षण और मूल्यांकन सुविधा विकसित की है। ‘हल मॉड्यूल ऑफ सबमर्सिबल प्लेटफॉर्म फॉर अकूस्टिक कैरेक्टराइजेशन ऐंड इवैलुएशन (स्पेस) नामक यह सुविधा जहाजों, पनडुब्बियों और हेलीकॉप्टरों सहित विभिन्न प्लेटफार्मों पर नौसेना के उपयोग के लिए विकसित की गई सोनार प्रणालियों के परीक्षण एवं मूल्यांकन में अपनी भूमिका निभाएगी।
सोनार प्रणालियों के मूल्यांकन द्वारा सेंसर और ट्रांसड्यूसर जैसे वैज्ञानिक पैकेजों की त्वरित तैनाती तथा आसान रिकवरी संभव हो पाती है।
कोच्चि स्थित डीआरडीओ की नौसेना भौतिक एवं समुद्र विज्ञान प्रयोगशाला (एनपीओएल) में यह सुविधा शुरू की गई है। एनपीओएल को सोनार और संबद्ध प्रौद्योगिकियों के विकास के कार्य के लिए जाना जाता है। एनपीओएल के अनुसंधान एवं विकास के प्रमुख क्षेत्रों में सिग्नल प्रोसेसिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंजीनियरिंग सिस्टम, ट्रांसड्यूसर, सामग्री और समुद्र विज्ञान शामिल हैं।
इस संबंध में जारी किए गए डीआरडीओ के ताजा वक्तव्य में ‘स्पेस’ को दुनिया में अपनी तरह की अनूठी सुविधा बताया गया है।
वक्तव्य में कहा गया है कि इस सुविधा की विशिष्टता विशेष रूप से डिजाइन किए गए सबमर्सिबल प्लेटफॉर्म में निहित है, जिसे समसमायिक रूप से संचालित विंच की श्रृंखला के उपयोग से 100 मीटर की गहराई तक उतारा जा सकता है।
महासागरीय अनुसंधान और नौसेना के विविध अनुप्रयोगों में सोनार तकनीक का उपयोग होता है। सोनार प्रणालियों में प्रयुक्त ध्वनिक आवृत्तियाँ बहुत कम (इन्फ्रासोनिक) से लेकर अत्यधिक उच्च (अल्ट्रासोनिक) तक अलग-अलग होती हैं। महासागरों की गहराई मापने, दुश्मन की पनडुब्बी का पता लगाने, डूबे हुए जहाजों के मलबे को खोजने, मानचित्रण, नौचालन, समुद्री सतह के नीचे एवं सतह के ऊपर वस्तुओं का पता लगाने के लिए सोनार (Sound Navigation and Ranging) तकनीक का उपयोग होता है। यह तकनीक जल के भीतर तथा सतह पर संचार के लिए ध्वनि संचरण (Sound Propagation) का उपयोग करती है।
‘स्पेस’ का निर्माण मेसर्स एलएंडटी शिपबिल्डिंग, चेन्नई द्वारा किया गया है। यह पहल एनपीओएल की अनुमानित अवधारणा डिजाइन और आवश्यकताओं पर आधारित है। डीआरडीओ ने कहा है कि प्लेटफॉर्म का डिजाइन और निर्माण भारतीय शिपिंग रजिस्टर और पोत वर्गीकरण प्राधिकरण की सभी वैधानिक आवश्यकताओं के अनुरूप है। यह केरल अंतर्देशीय वेसल नियमों के अनुसार निरीक्षण तथा पंजीकरण मानदंडों का सख्ती से पालन करता है।
इस पहल को भारत सरकार की ‘आत्मनिर्भर भारत‘ और ‘मेक इन इंडिया‘ प्रतिबद्धता को प्रोत्साहन देने में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
(इंडिया साइंस वायर)